वजूद hindi kavitha

क्या अब समय हो चला है..

आगे बढ़ने का.. कुछ कर गुज़रने का?

ये कैसी आज़ादी?
जब तू ज़ंज़ीरों में हैं..
तेरी आखों पर वो परदा है पड़ा
और ख़ुदा के नाम पे जंग, नफरत और मौत है!

क्या तुम अपने जीवन का मालिक हो?
तो लालच की गुलामी क्यों?
तेरी हर कोशिश और ख्वाब
इस अंधकार ने लूट लिए!

आजादी क्या है?
जब तेरे पास कहने को कुछ नहीं..
कुछ करने की तेरी आग को रौशनी की हवा नहीं..
और इंसानियत का बुलंद दरवाज़ा अब बंद है!

अगर तुझे इक नया जहाँ चाहिए..
तो पहले अपनी आजादी को बचा..
तेरी आजादी तेरे हाथो में!
तेरा जीवन तेरी आंखों में!

1 comment:

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