भले ही ठाकरे खानदान के लोग अपनी डिब्बाबंद सियासत को आगे बढ़ाने के लिए अन्य राज्यों से आए प्रवासियों पर चीख-चीख कर अपना गला खराब कर रहे हों और उन्हें भगाने के लिए अपनी-अपनी लाठियां भांज रहे हों, लेकिन उनके कार्यकर्ता और जनाधार के लोग अपना रास्ता उनसे अलग करते जा रहे हैं, और इस तरह दुनिया के तौर-तरीकों को लेकर उनसे कहीं ज्यादा समझदारी दिखा रहे हैं।
स्थानीय लोगों ने अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक महत्वाकांक्षाओं का अनुसरण करते हुए यह समझ लिया है कि उनके भविष्य का खाका और उसका आकार ग्लोबल है, और फॉर्चून 500 में शामिल सभी लोगों के आपसी संवाद की भाषा इंग्लिश है। बिल्कुल साफ है कि भारत के बड़े शहरों में खेल का ढांचा बदल रहा है। लेकिन शिव सेना जैसी पार्टियां आज भी पुराने नियमों से ही खेलना पसंद करती हैं। जाहिर है, ठाकरे खानदान को भी उसी तरह खुद को बदलने और पुराने मुकाम से आगे बढ़ने की जरूरत है, जिस तरह वे लोग खुद को बदलते हुए आगे बढ़ रहे हैं, जिनका प्रतिनिधित्व ये किया करते हैं।
Priy Mitr
ReplyDeleteaapka blog dekha bahut achchha laga behad khushi bhi hui. hum ek magazine shuru karne ja rahe hain. yadi aap usme niymit roop se likh saken to mujhe bahut khushi hogi.
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